जोशीमठ में दरारें क्या प्रकृति से छेड़छाड़ का है नतीजा ?

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प्रकृति और विकास दोनों को साथ साथ लेकर चलना होगा ताकि प्रकृति से छेड़छाड़ विनाश का कारण ना बने ।

उत्तराखंड के जोशीमठ में घरों की दीवारों से छतों और सड़कों में दरार की संख्या में इजाफ़ा होता जा रहा है । बड़ी संख्या में घरों-दुकानों और अन्य जगहों पर ऐसा देखने में आ रहा है। लोग बुरी तरह डरे हुए हैं। इतने कि लोगों को दूसरी जगह बसाने तक करने पर विचार चल रहा है। जोशी मठ में मकानों में दरारें पड़ने की घटनाएं पहले भी आई थीं। हालांकि, इनकी संख्या कम थी । लेकिन अब ऐसा क्या हुआ की जोशीमठ में अचानक मकानों में दरारें और सड़कों का दरकना बढ़ गया । बिना किसी भूकंप या प्राकृतिक आपदा के यह स्थिति क्यों बनी ? 

एक्सपर्ट ने कहा कि क्षेत्र में निर्माण गतिविधियां बढ़ गई हैं, परियोजनां लागू कर दी हैं। इससे ब्लास्टिंग भी बढ़ गई है। इस दरारों की वजह बड़ी परियोजनाओं की वजह से ही यह प्रभाव पड़ रहा है। देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक कलाचंद सेन का कहना है कि, "आज की स्थिति अनेक कारणों का परिणाम है। यह प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों है।” वह कहते हैं, जोशीमठ की मिट्टी कमजोर है। यहां की मिट्टी में ज्यादातर भूस्खलन द्वारा लाया गया मलबा है। यह क्षेत्र एक अत्यधिक भूकंपीय क्षेत्र भी है। अनप्लांड कंस्ट्रक्शन, जनसंख्या का दबाव, टूरिस्ट इंफ्रास्ट्रक्चर, पानी के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा, जल विद्युत परियोजनाएँ, विकास गतिविधियाँ सभी ने वर्तमान स्थिति में योगदान दिया है। 


जोशीमठ की मुख्य समस्या यह है कि यह शहर ढीली मिट्टी पर बसा है।यहां की मिट्टी बड़े निर्माणों को सपोर्ट नहीं करती है।निश्चित रूप से परियोजना को लेकर सही तरीके से अध्ययन या रिसर्च नहीं किया गया है। इसमें कहीं ना कहीं चूक हुई है। किसी भी क्षेत्र में विकास बहुत ज़रूरी है लेकिन विकास के साथ साथ ज़रूरी है वहाँ के भौगोलिक स्थिति व संरचना के बारे में जानकारी । प्रकृति और विकास दोनों को साथ साथ लेकर चलना होगा ताकि प्रकृति से छेड़छाड़ विनाश का कारण ना बने ।


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