काश ईश्वर उगा दे किस्मत का सूरज हर गरीब की झौंपडी में।
चुरा लूं थोड़ी सी सर्दी !





सोचती हूँ चुरा लूं थोड़ी सी सर्दी मौसमों से
और छिपा दूं वक्त की गुल्लक में
और फिर किसी उमस भरी गर्मी
की शाम में उसे ओढ़ लूं, या फिर
थोड़ी सी गर्मियां मांग लूं जून की दुपहरी से
और बिखरा दूं ठिठुरते आंगनो में
जहां कोई गरीब शून्य में ताकता हुआ
सोचता होगा सर्दी के कहर के बारे में
सूरज की पहली किरण जब झांकती है
इनके आशियाने में, तो पिघला देती है
थोड़ी सी तासीर इस ठिठुरन की
मौसम की आहट किसी को डराती है
तो किसी को खुशनुमा कर जाती है
यही बात अक्सर मुझे परेशान कर जाती है
सोचती हूँ, काश ईश्वर उगा दे किस्मत
का सूरज हर गरीब की झौंपडी में।
By Nisha Khurana