समुद्री काई दुनिया का सबसे पौष्टिक भोजन है जिसमें प्रोटीन , ओमेगा 3 एसिड, सोडियम, पोटैसियम, जिंक जैसे तत्व प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसी कारण इन्हें सुपरफूड भी कहा जाता है। ये सुपरफूड मार्केट में भी आ चुके हैं। जापान व यूरोपीय देशों में इनका काफी चलन है।
रहस्यमयी समुद्री काई क्यों खाते हैं लोग ?





वानप्रस्थ सीनियर सिटीजन क्लब में चर्चा समुद्री काई पर थी और इसे लेकर हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर डॉ स्वराज कुमारी ने कई ऐसी जानकारियां दी जो आम आदमी नहीं जानता।
समुद्री काई, को वैज्ञानिक फाईटोप्लैंकटन नाम से जानते हैं। इस के कई रूप, रंग और आकर होते हैं। प्राय: तालाबों और जोहड़ों में पाई जाने वाली काई का रंग हरा होता है पर समुद्र में नीले, पीले और लाल रंग की काई भी पाई जाती है। काई की कुछ किस्मों को नंगी आंख से देखा जा सकता है जबकि अधिकतर किस्में अति सूक्ष्म जीवाणु होती हैं जिन्हें इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से ही देखा जा सकता है। कुछ किस्में तो एक सेल से ही बनी होती है। इसकी कुछ किस्में चमकदार भी होती हैं और इस कारण इन्हे समुद्र के जुगनू भी कहा जाता है। एक खास किस्म की काई का बाहरी आवरण सिलिका का बना होता है और बड़ा चमकदार होता है।
समुद्री काई सूरज की रोशनी में फोटोसिथेसिस प्रक्रिया के तहत कार्बन डाइऑक्साइड से अपना भोजन तैयार करती है और ऑक्सीजन हम मानवों के लिए छोड़ देती है। इसी कारण फाईटोप्लैंकटन यानी समुद्री काई को हम मानव के फेफड़े भी कह सकते हैं। ये समुद्र व अन्य जल राशियों के अदृश्य हीरो भी कहे जाते हैं। समुद्री काई समुद्री जीवों का भोजन भी बनती है। अगर यह काई न हो तो अन्य समुद्री प्राणी भी नहीं रहेंगे।
आम मान्यता यह है कि हमें प्राणवायु ऑक्सीजन धरती के पेड़ पौधों की फोटोसिथेसिस क्रिया से मिलती है। प्रो स्वराज ने बताया कि हमारी जरूरत की ऑक्सीजन का 50% भाग समुद्री काई जैसे जीव सूर्य की रोशनी में तैयार करते हैं। धरती के 70% हिस्से में समुद्र हैं और धरती का स्थल भाग केवल 30% है।
समुद्री काई को अपने भोजन के लिए कार्बन के इलावा फॉस्फेट और नाइट्रेट जैसे पदार्थ भी चाहिएं। इन्हीं के कारण समुद्री जल का रंग व स्वाद भी बनता है। ये मौसम को भी नियंत्रित करते हैं। समुद्री काई हवा और लहरों के साथ इधर से उधर घूमती फिरती रहती है। इसीलिए इन्हें घुमंतू जीव भी कहते हैं।
उन्होंने बताया कि आदमी के शरीर और उसके हर सैल में नमक का औसत करीबन वही है जो समुद्र के पानी का है। इसे वैज्ञानिक इस बात का सबूत मानते हैं कि मानव जीवन भी समुद्र से ही उत्पन्न हुआ है। समुद्री काई दुनिया का सबसे पौष्टिक भोजन है जिसमें प्रोटीन , ओमेगा 3 एसिड, सोडियम, पोटैसियम, जिंक जैसे तत्व प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसी कारण इन्हें सुपरफूड भी कहा जाता है। ये सुपरफूड मार्केट में भी आ चुके हैं। जापान व यूरोपीय देशों में इनका काफी चलन है।
समुद्र में प्रदूषण के कारण समुद्री काई को भी खतरा पैदा हो गया है। कृषि के उपयोग में लाए जा रहे फर्टिलाइजर नदियों में बहकर समुद्र तक पहुंच रहे हैं। पेट्रोलियम की खोज में समुद्रों में की जा रही ड्रिलिंग से भी समुद्री काई को नुकसान पहुंचता है। समुद्र में पेट्रोलियम की ढुलाई करते विशाल टैंकरों के दुर्घटना ग्रस्त होने से क्रूड के रिसाव से काई तो क्या समुद्री जीव भी मारे जाते हैं। समुद्री काई के विकास में मामूली परिवर्तन भी विश्व का तापमान बदल सकता है जिसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
(लेखक अजीत सिंह दूरदर्शन से सेवानिवृत्त निदेशक हैं। आजकल स्वतंत्र लेखन करते हैं।)
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